यह सच है कि मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में कम आबादी है और इस क्षेत्र की जनसंख्या के अधिकांश आबादी एक आदिवासी आबादी है. लेकिन जिले के पर्यटन स्थलों के रूप में अलग महत्व है. झाबुआ के पर्यटन स्थलों का भ्रमण धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व के रूप में अच्छी तरह से किया जा सकता है. झाबुआ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से कुछ भाबरा, देवझिरी, लखमनी, माल्वई, आमखुट , राजवाडा , अनास नर्सरी आदि हैं वही धार्मिक पर्यटन स्थलों में हनुमान टेकरी , वनेश्वर हनुमान मंदिर, गोपाल मंदिर, मातंगी धाम, सिद्धपीठ बालाजी हनुमान मंदिर , साईं मंदिर, प्राचीन कलिका मंदिर, चिंता मणि गणेश मंदिर, बावड़ी हनुमान मंदिर , राम शरणम् , आदि है ,, झाबुआ नगर को प्राचीन मंदिरों की धरोहर कहे तो गलत नहीं होगा इन मंदिरों और दरगाहो के प्रति भक्तो की आस्था देख जिले के दिवंगत प्रगान ज्योतिष श्री विश्वनाथ जी त्रिवेदी जी ने कहा था की ""आध्यात्मिक उन्नयन की द्रष्टि से झाबुआ नगर उपयुक्त है और भविष्य में यह अच्छी तरक्की करेगा ... यहाँ पर 1990 के बाद पुण्यात्मा अधिकाधिक जन्म लेगी .. दुश्प्रवातियो का नाश होगा और शने: शने: सदप्रवत्तियों का उदय होगा "" वाकई में यह बात आज सत्य प्रतीत हो रही प्राचीन स्थलों, ऐतिहासिक स्थलों का जीर्णोधार कर उन्हे उपयुक्त बनाना, उनकी देख- रेख और सफाई कर मंदिरों के प्रति आस्था प्रकट करना इसी बात का संकेत है
भाबरा
यह अलिराजपुर जिले के जोबट तहसील में जोबट दाहोद रोड पर ३२ किलोमीटर की दुरी के लगभग उत्तर - पश्चिम क्षेत्र में है.भाबरा एक पर्यटन स्थल के रूप में लोकप्रिय है क्योंकि प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद भाबरा में ही पैदा हुवे थे. हाल ही में मध्य प्रदेश शासन द्वारा चंद्रशेखर आजाद की प्राचीन कुटिया का जीर्णोधार कर यहाँ एक भव्य स्मारक बनाया गया है ... साथ ही मध्य प्रदेश शासन द्वारा भाबरा शहर का नाम परिवर्तन कर आजाद नगर भी कुछ समय पहले ही किया है
देवझिरी
देवझिरी एक प्राचीन मंदिर है जैसा की नाम से ही प्रतीत है की भगवान शिव (देव, एक देवता) और झिरी या एक बारहमासी वसंत ! वसंत एक कुंड में निर्मित किया गया है. एक समाधि बैसाख पूर्णिमा, जो अप्रैल के महीने में आयोजित की जाती है. देवझिरी तीर्थ में भगवान शिव का भव्य मंदिर चारो तरफ हरियाली युक्त द्रश्य और मंदिर प्रांगन में ही एक जल कुंड जहा पिछले कई वर्षो से नर्मदा नदी का जल अनवरत प्रवाहित हो रहा है ,, जल का निकास और मार्ग आज तक सभी भक्तो के लिए एक आश्चर्य का विषय है की यह जल कुंड यहाँ तक किस मार्ग से आ रहा है .. देवझिरी तीर्थ एक धार्मिक, ऐतिहासिक, पर्यटन और एक चमत्कारिक स्थल जहा भक्तो की सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है
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लखमनी ग्राम
लखमनी ग्राम सुकर नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गांव है. इस गांव में एक नवनिर्मित जैन मंदिर है. गांव १९२५ के मध्य प्रमुखता से पुरातत्वविदों, इतिहासकारों के मध्य प्लास्टिक कला के रूप में आ गया .. जब इस मंदिर में प्रतिष्ठापित जैन छवियों का एक क्षेत्र से पता लगाया गया. छवियों दूधिया सफेद , संगमरमर और काले संगमरमर की थी ... इन छवियों को संमूसा नाम दिया गया .. तत्पश्चात स्थल को खुदवाया गया तो यहाँ से जैन छवियों के अलावा हिंदू देवी - देवता और हिंदू मंदिर के अवशेष की छवियों भी पाई गयी .यह सभी मूर्तियां 10 वीं से 11 वीं सदी की शैली की थी . इन सभी छवियों की प्राप्ति के बाद से लखमनी ग्राम को एक तीर्थ (पवित्र स्थान) के रूप में विकसित किया गया .... इसके उपरांत प्रतिवर्ष यहाँ एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है.
मलवई
मलवई अलीराजपुर तहसील में विंध्याचल रेंज के उत्तरी तलहटी पर निर्मित है.. वहाँ एक प्राचीन लेकिन छोटे खंडहर वाला शिव मंदिर है. मंदिर के मंच आयताकार है, लेकिन कई शंक्वाकार कॉलम मंदिर के कलश तक पहुची हुई है , कलश वर्तमान में गिर गया है .शंक्वाकार कॉलम के सामने भाग भी गिर गया है. पेनल्स की सामने की पंक्ति में कई खूबसूरत और नक्काशीदार छवियों को बनाया गया है जो 12 वीं से 13 वीं सदी के बीच की प्रतीत होती है ...
अम्खुट
अम्खुट विंध्याचल रेंज के जंगलों के बीच स्थित है. यह एक प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण प्राप्त स्थल है. कनाडा ईसाई मिशनरियो ने आदिवासी गांवों के बीच ईसाई मिशनरियो का एक केंद्र स्थापित किया है ....
गोपाल मंदिर झाबुआ
गोपाल मंदिर झाबुआ आज से ४० वर्ष पूर्व मंदिर निर्माण के समय मंदिर के समीप ही ३३ निवास स्थलों के सदस्यों का छोटा सा ऋषिकुल आज ४० वर्ष बाद हजारो भक्तो कि आस्था व प्रेम वाला ऋषिकुल आश्रम बन चूका है। ऋषिकुल में जन्त्राल , झाबुआ , बावड़ी के साथ - साथ आस पास के गाँव, शहरो , कस्बो जैसे अनेक भक्त ऋषिकुल और गोपाल मंदिर संचालित गतिविधियों में हिस्सा लेते है । यही कारण है कि आज झाबुआ शहर अन्यत्र व दूरस्थ शहरो में गोपाल मंदिर झाबुआ के द्वारा ही पहचाना जाता है। झाबुआ शहर कि सांस्कृतिक व धार्मिक छवि को पल्वित और पोषित करने हेतु गोपाल मंदिर व ऐसे ही कई मंदिर जो पिछले कई वर्षो से अपने प्राचीन इतिहास को यथावत रखते हुए भक्तो के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए है उनका भी महत्वपूर्ण योगदान है . गोपाल मंदिर में ऋषिकुल भक्त बालको कि बढती हुई संख्या माँ श्री गोपाल के आशीर्वाद का परिचायक होने के साथ ही यह कहा जा सकता है भविष्य में गोपाल मंदिर झाबुआ का प्राचीन इतिहास प्रत्येक भक्त बालक कि जिव्हा पर होने के साथ ही झाबुआ जिले के प्राचीन इतिहास कि सूची में गोपाल मंदिर का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित होगा, और शायद गोपाल मंदिर का ये ही इतिहास युग युगांतर अपनी ऐतिहासिक छवि को सहेजे झाबुआ जिले के इतिहास में अपनी भव्य मोजुदगी दर्शायेगा।
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मातंगी धाम
हरियाली युक्त वातावरण में निर्मित मातंगी मंदिर चारो और से हरियाली से ढकॉ हुआ है। मंदिर में खडे होकर जिस और भी नजर जाती हरियाली और सुंदरता से भरे दृश्य ही दिखाई देते । मातंगी धाम पर ऐसी हरियाली व विहंगम दृश्य देखकर अनुभुति होती है कि प्राचीनकाल में निशचित ही यहॉ कोई देव्य शक्ति प्रत्यक्ष रूप में विद्यमान रही होगी जिसके ही दिव्य साये के रूप में आज यह स्थल इतनी विशालता एवं इतने वर्षो के बाद भी आज उसी प्राचीन काल की मौजुदगी इन हरियाली आछादित वादियो में दर्शा रहा है फरवरी 2011 में मातंगी धाम झाबुआ में नवनिर्मित मंदिर स्थल का निर्माण पश्चात् मातंगी की मूर्ति स्थापना की गयी , कार्यक्रम चार दिनों का था जिसमे मातंगी मूर्ति की स्थापना के साथ ही मातंगी का पाटोत्सव भी भव्य रूप में मनाया गया। सेकडो वर्ग फीट में फैला मातंगी मंदिर शहर के बिल्कुल मध्य भाग में स्थित है । मातंगी मंदिर इंदौर अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही स्थित है।
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हनुमान टेकरी
झाबुआ शहर के शीर्ष पर और तल से लगभग ७० फिट उचाई पर स्थित हनुमान टेकरी मंदिर .... झाबुआ जिले के इतिहास में एक अलग महत्वता , और एक अलग युग का परिचय कराता सा प्रतीत होता है . जैसा की नाम से ही स्पष्ट है की हनुमान टेकरी . टेकरी शब्द उची , और टेकरी पर निर्मित मंदिर की संरचना का आभास कराता है मंदिर प्रांगन में खडे होकर पूरे झाबुआ शहर का अदभुद नज़ारा देखा जा सकता है इतनी उचाई से पूरे शहर का द्रश्य रात्रि के समय और भी विहंगम हो जाता है .. निश्चित रूप से हनुमान टेकरी झाबुआ शहर के मानचित्र पर स्थित एक ऐसी कलाकृति , एक ऐसा अतुल्य और अमूल्य स्थान जहा पर एक बार जाने के उपरांत वर्षो तक यहाँ की भव्य छवि प्रत्येक भक्त के जहन में निरंतर बनी रहती है ..

राम शरणम्
ram_sharnam_jhabuaबडे तालाब के समीप सात हज़ार वर्ग फीट में बना राम शरणम् का विशाल भवन झाबुआ जिले के साथ ही पूरे प्रदेश में आस्था का केंद्र बना हुआ है .. तल से ३ मंजिला राम शरणम् भवन की आकृति भक्तो और दर्शनाथ लोगो के लिए बेहत आकर्षक और दुर्लभ नज़ारा प्रतीत होता है ... चारो तरफ हरियाली से भरे द्रश्य और समीप ही विशाल तालाब को देख ऐसा आभास होता है जैसे राम शरणम् का यह विशाल भवन तालाब में अपना प्रतिबिम्ब निहार रहा हो.... निश्चित रूप से अनुपम छठा , दुर्लभ नज़ारा और हरियाली भरे द्रश्य राम शरणम् भवन के खूबसूरती में चार चाँद लगा रहा सा दिखाई पड़ते है ... भवन के निर्माण में हजारो भक्तो ने अपना पसीना बहाया ...यही कारण है की बाज़ार मूल्य के हिसाब से करीब पोने दो करोड़ की लागत का मंदिर मात्र 90 लाख रुपये में बनकर तैयार हो गया भवन का कुल निर्मित क्षेत्रफल 33 हज़ार 250 वर्ग फीट है ,जिसमे पांच सो साधक एक साथ रहकर साधना कर सकते है ... भवन के लिया सात हज़ार फीट जमीन 12 लाख रुपये में खरीदी गयी यह जमीन पहले राजा की थी जिस पर हाथी बांधे जाते थे बाद में इसे पांच व्यवसायियों ने खरीद लिया .....संस्था के अलावा 17 हज़ार लोगो ने 90 लाख के राशी बिना मांगे भेट करी .....२६ जनवरी 2005 को भवन का भूमि पूजन किया गया ...करीब 13 महीनो की अवधि तक अनवरत कार्य चलने के पश्चात् 3 मार्च 2006 को राम शरणम् का उदघाटन समारोह रखा गया जिसमे पूरे देश के भक्तो ने अपनी मोजुदगी दर्ज कराई..

इसके अलावा झाबुआ शहर के पास रंगपुरा में एक रामपंचायत मंदिर और एक जैन मंदिर है.